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Sunday 16 September 2018

छल

रामराज कहते थे वो
मगर कलयुग का आगाज हुआ
80 की  पेट्रोल हुई ,डीजल भी 70 के पार हुआ।
भ्रष्टाचार चरम पर पहुंची, युवा भी लाचार हुआ।
शिक्षा खस्ताहाल हुई, कृषक भी बेकार हुआ ।
ये कैसा रामराज हुआ.....

चरणों में झुकी रह गई सत्ता, बैंकों का भी बंटाधार हुआ।
माल्या तो निकला ही था,नीरव भी अब फरार हुआ।
चुनावी वादे जुमले बन गए, वोटों से केवल करार हुआ
शीश कटे जब सीमा पर बेटो के, तब यह 56 इंच का सीना भी बेकार हुआ।
बोलो ये कैसा रामराज हुआ?

Saturday 30 June 2018

फिक्र

   
  जया और नरेश ने अपने बच्चों के पालन-पोषण में कहीं कोई कमी नहीं छोडी। बिहार के छोटे से गांव में रहने के बावजूद बच्चों को शहर की हर सुख-सुविधाओं से परिचित करवाया। चाहे वह रंगीन टी.वी की बात  हो या फिर स्मार्टफोन की बच्चों की हर जिद को पूरी करना मानो उनकी कर्तव्य हो, बच्चों ने इधर मांग की और उधर मांग पूरी हो गई। अभिनव और पिंकी वाक्य में काफी खुशनसीब थे, जिन्हें ऐसे माता-पिता मिले। मगर फिर भी अभिनव घर का चहेता था ।उसके घर में आते ही घर में मानो रौनक सी आ जाती थी। पता नहीं क्यों, मगर अभिनव की घर में तनिक भी गैरमौजूदगी जया के फिक्र को बढ़ा देती थी, आख़िर मां जो थी। और अभिनव की बात करे तो जनाब को घर में मन ही कहां लगता था। बस जनाब को दिनभर खेलने का बुखार चढ़ा रहता था।
 
अभिनव ने पिछले महीने ही बारवीं की परीक्षा दी थी मगर उसका बचपना अभी भी जस का तस बना हुआ था। जया और नरेश के लाड-प्यार ने उसके बचपने को और बढ़ा दिया था। पिंकी अभिनव से छोटी जरूर थी मगर उसकी बातें बड़ो जैसी थी। उसका भी अभिनव से काफी लगाव था। इन दोनों  कि शरारतें पूरे गांव भर में मशहूर थी।कभी इनकी शरारतों के उलाहने जया को गांव के लोगो द्वारा सुनने को मिलते तो कभी इन दोनों की यहीं शरारतें जया के मुस्कान का कारण बनती। दोनों भाई-बहन शरारती जरूर थे मगर दोनों पढ़ाई में भी काफी होनहार थे।
     अभिनव घरवालों के सामने अपना बचपना जरुर दिखाता था, लेकिन अपने आगे के भविष्य को लेकर वह भी काफी चिंतित रहता था। परिणाम आने के हर घटते दिन के साथ उसकी ये चिंता और भी गंभीर होती जा रही थी। वह कभी बिहार में रहकर ही अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करने की सोचता तो कभी दिल्ली जाकर वहां पढ़ने की सोचता। उसका यह असमंजस उसे और भी परेशान करता था।
      आज अभिनव के बारवी का परिणाम आने वाला था मगर जनाब की बात करें तो जनाब अभी तक सो ही रहे थे।  मगर घरवाले काफी परेशान थे। और जब जनाब उठे तो उनको इस बात की सुध ही नहीं थी कि आज उनका परिणाम आने वाला है। उठते के साथ ही उसने पिंकी को बुलाया और पूछा,“ आज इतनी खामोशी क्यों है घर में”। पिंकी ने अपनी त्योरियों को चढ़ाते हुए पूछा,“तुम्हे सच में नही मालूम,आज क्या है?” अभिनव ने बड़ी ही मासूमियत के साथ गर्दन हिला दिया। पिंकी का गुस्सा और भी बढ़ गया और उसने चिल्लाते हुए बताया,“ आज तुम्हारे बारवीं का परिणाम आने वाला है! भैया नींद से जागो” ।अचानक अभिनव ने अपना आंख मला और भौचक्क सा होकर बैठ गया तथा घड़ी की ओर निहारने लगा और पिंकी को अपना फोन लाने को कहा। पिंकी ने तुरंत फोन लाकर अभिनव के सामने रख दिया। अभिनव ने तुरंत नेट पर अपना परिणाम चेक किया और परिणाम देखते के साथ वह खामोश सा हो गया । पिंकी के बार- बार परिणाम पूछे जाने पर उसने बताया कि वह अच्छे नंबरों के साथ पास हो गया है। पिंकी ने तुरंत यह खुशखबरी अपनी मां को सुनाया ,जया अभिनव की इस कामयाबी से फूले ना समायी और तुरंत अभिनव को गले से लगा लिया तथा उसके माथे को चूमने लगी, पिंकी भी तुरंत अपनी मां से लिपट गई। जया ने नरेश को आवाज लगाते हुए,“ अरे सुनते हो अब तो मोहल्ले में मिठाई बंटवा ही दो”। नरेश ने तुरंत पूछा,“ क्यों ?क्या हुआ है।“ जया ने कहा ,“अपना अभिनव पास हो गया है।“ नरेश ने तुरंत पूरे मोहल्ले में खुशी के मारे मिठाई बंटवा दिया।
     

अभिनव अपने परिणाम काफी संतुष्ट था तथा उसे नंबर भी अच्छे मिले थे लिहाजा वह दिल्ली जाकर आगे की पढ़ाई दिल्ली विश्वविद्यालय से करना चाहता था। अपनी इस इच्छा को उसने पिता के सामने रखा ,शुरू में पिता ने थोड़ी हिचकिचाहट जरुर जताई मगर हां कर दिया। मगर अभिनव यह भी जानता था कि अगर उसने मां से बाहर जाकर पढ़ने की बात कही तो वह साफ मना कर देगी। मगर उसने फिर भी जया के सामने अपने बाहर जाकर पढ़ने की बात कही और उसे जवाब भी उसके अनुमान के अनुसार ही मिला जया ने साफ इनकार कर दिया। आखिर वह मां जो थी अपने बच्चे की फिक्र कैसे न करती? ऐसा नहीं था कि नरेश अभिनव की फिक्र नहीं करता था मगर वह अभिनव में खुद को देखता था और वह अभिनव की इच्छाओं को अपना बना लेता था तथा उसे पूरा करने का हर मुमकिन प्रयास करता था। लिहाजा उसने जया को खूब समझाया और अंतत: जया मान गयी।
 
सुबह होते ही अभिनव दिल्ली जाने की तैयारियां करने लगा ।जया और पिंकी का उदास चेहरा उसे भी मायूस कर रहा था मगर उसने खुद को थामे रखा। आखिरकार अभिनव मां तथा पिता का आशीर्वाद लेते हुए दिल्ली की ओर निकल पड़ा। पिता की आंखें बेटे के कामयाबी के अरमानों से भरी पड़ी थी ,जो उसे खुद से बेटे को अलग करने के लिए मजबूर कर रही थी। माँ ने केवल यह कहते हुए बेटे को विदा किया कि ,“बेटा !फोन करते रहना।” परिवार के अरमानों एवं उनके सपनों सच करने के लिए वह दिल्ली आ गया तथा दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज
दाखिला प्राप्त कर लिया तथा रहने की बात करें तो यही नजदीक में कमला नगर में PG ले लिया। दिल्ली की आवो हवा उसके अनुकूल बिल्कुल भी ना थी। ऐसी आजादी का अनुभव शायद उसने पहले कभी नहीं किया था। शुरू में उसके लिए इस परिस्थिति में खुद को ढाल पाना काफी मुश्किल था लिहाजा वह रोज शाम माँ से फोन पर बात करके खुद को तसल्ली दे दिया करता था। मगर समय के साथ उसने खुद को इस परिस्थिति में ढाल लिया था। वह भी अब बाकियों की तरह बेफिक्री की राह पर निकल पड़ा था । कॉलेज में उसकी मुलाकात नए-नए मित्रों से हुई। मित्रों की बात करे तो अधिकतर रिहायशी परिवार से ताल्लुक रखते थे मगर अभिनव की बात करें तो उसके परिवार की स्थिति उतनी भी अच्छी नहीं थी। मगर अभिनव अपने दोस्तों से इतना जुड़ चुका था कि वह अपने और दोस्तों के बीच पैसे को नहीं आने देना चाहता था। उधर जया की बात करें तो उसका फिक्र अभिनव को लेकर दिनों -दिन बढ़ता ही जा रहा था। क्योंकि पहले अभिनव प्रतिदिन फोन किया करता था मगर अब फोन आने की रफ्तार चिट्ठियों के आने की रफ्तार से भी धीमी पड़ने लगी थी। अब अभिनव महीने में एक से दो बार ही घर पर फोन करता था। वह भी केवल पैसों की मांग के लिए अभिनव का इस तरह का बर्ताव जया के समझ से बिल्कुल ही पड़े था। मगर नरेश समझता था कि पढ़ाई में व्यस्त होने के कारण वह ऐसा व्यवहार कर रहा है।
अभिनव काफी अच्छा कलाकार था। लिहाजा रामजस कॉलेज की नाटक सोसाइटी में शामिल हो गया उसमें एक कुशल कलाकार के गुण भली-भांति सम्मिलित थे। उसे नाटक में भूमिका अदा करने से बहुत सुकून मिलता था। वह नाटक करने में इतना डूब गया था कि उसने अपने विषय से जुड़े लेक्चर भी अटेंड करना कम कर दिया था। नाटक के दौरान ही उसकी मुलाकात रचना नाम की लड़की से हुई ,जो खुद रामजस कॉलेज में पढ़ा करती थी। पहली नजर में ही अभिनव उसकी और आकर्षित हो गया और जब जान- पहचान का सिलसिला आगे बढ़ा तो अभिनव को एहसास हुआ कि उसके बाकी दोस्तों की तरह ही रचना भी काफी रिहायशी परिवार से ताल्लुक रखती थी। मगर अभिनव को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था। अब बस वह रचना से बात करने का मौका तलाशता रहता था। रचना अभिनव के लिए किसी चुंबक से कम नहीं थी जिसे देखते ही वह उसकी ओर
खींचा चला जाता था। रचना भी अभिनव को नाटक करता देख काफी खुश होती थी। रचना से मुलाकात के बाद अभिनव अपनी पढ़ाई से बिल्कुल ही भटक चुका था। वह अपने सभी सपनों अरमानों को भूल चुका था जिन्हें लेकर वह अपने गांव से निकला था ।अब उसके लिए यह सपने कोई मायने नहीं रखते थे। उसके भीतर दिल्ली की आजादी का नशा कुछ ऐसा चढ़ा था कि उसे किसी बात की सुध- बुध नहीं रह गई थी। मानो अब रचना ही उसके लिए सब कुछ हो। धीरे- धीरे रचना भी उसकी और खींचती चली गई।अब  दोनो अधिकतर वक्त एक- दूसरे के साथ बिताने लगे थे। कभी दोनों फिल्म देखने कमला नगर निकल पड़ते तो कभी हडसन लेन तो कभी सुदामा की टी स्टॉल पर चाय की चुस्की लेते दिख जाते थे। लड़का होने के नाते यह घूमने- फिरने का सारा खर्च अभिनव को ही उठाना पड़ता था। मगर इसके पीछे भी उसका अपना स्वार्थ छिपा हुआ था। वह मनो-मन रचना को चाहने लगा था मगर वह अपने प्यार का इजहार करने से डरता था। क्योंकि उसके ऐसा करने से यदि रचना ने दोस्ती तोड़ ली
तो फिर उसका गुजारा कैसे चलेगा।अभी काम से कम वह उसके साथ तो है। रचना की दिल की बात जानने के लिए वह खुद को और समय देना चाहता था मगर पैसों की तंगी उसे परेशान कर रही थी और अभी वह घर वालों से पैसों की मांग भी नहीं कर सकता था। क्योंकि 2 दिन पहले ही तो घर वालों ने पैसे भेजे थे जो अब खर्च हो चुके थे। मगर महीना चलाने के लिए अब कहीं न कहीं से तो पैसों का बंदोबस्त करना ही था। लिहाजा उसने रात में होटलों पार्ट टाइम काम करना शुरु कर दिया और उसके इस कदम का नतीजा उसके परिणाम पर भी देखने को मिला जिसके अनुसार वह पहले सेमेस्टर को सफलतापूर्वक पार नहीं कर पाया अब उसके सामने यह बड़ा सवाल आ पडा कि वह यह परिणाम किस मुंह से अपने घर वालों को बताएगा?लिहाजा उसने पहले सेमेस्टर में फेल हो जाने की बात सबसे पहले रचना को बताना उचित समझा। उसे उम्मीद थी की रचना उसका इस परिस्थिति में जरूर साथ देगी। उसके उम्मीद के मुताबिक ही शुरू में रचना ने उसका साहस जरूर बढ़ाया। मगर धीरे-धीरे वह अभिनव से कटने लगी। दोनों की मुलाकातें भी कम होने लगी। रचना ने अभिनव से फोन पर बात करना भी कम कर दिया। इस परिस्थिति में रचना को खुद से दूर जाता देख अभिनव यह समझ चुका था कि रचना उससे कभी प्यार करती ही नहीं थी। मगर अभिनव अभी भी उससे  उतना ही प्यार करता था जितना कि पहले करता था।
 
परीक्षा तथा प्यार दोनों में हार के बाद अभिनव बुरी तरह टूट चुका था। परीक्षा में फेल हो जाने से ज्यादा गम से इस बात का था कि इस परिस्थिति में रचना ने उसका साथ छोड़ दिया था। इतना सब हो जाने के बाद उसे अब अपनी जिंदगी निरर्थक नजर आ रही थी। जिसे वह खत्म कर देना चाहता था। अपनी चिंताओं से लड़ने के लिए उसने ड्रग्स का सहारा लेना शुरु कर दिया, नशे की बुरी लत पालने लगा। दिनों- दिन तक खुद को घर में कैद रखने लगा। उधर घरवाले उसके फोन ना उठाए जाने से काफी परेशान हो रहे थे। आखिरकार उन्होंने दिल्ली आकर अभिनव से मिलने का निश्चय कर लिया।
    दिल्ली पहुंच जब जया एवं नरेश ने अभिनव हाल देखा तो समझ गए कि उसके जीवन में कुछ भी सही नही चल रहा है।घर में शराब की बोतल बिखरी पड़ी थी। सामान इधर- उधर बिखरा पड़ा था। घर के एक कोने में अभिनव बेसुध- सा नजर आ रहा था। उसकी आंखों से आंसुओ की धारा बह रही थी। अपने कलेजे के टुकड़े को इस हाल में पाकर जया भी बिलख-बिलख के रोने लगी और तुरंत अभिनव को अपने गले से लगा लिया तथा अपने आंचल से उसकी आंसुओ को पोछने लगी।बहन पिंकी भी अभिनव से लिपटी हुई थी। नरेश भी अपने बिखरे हुए अरमानों को देख खुद को थामे ना रखा सका और रोने लगा।एक बार फिर  अपनों के बीच  खुद को पाकर अभिनव का भी हौसला बढ़ने लगा उसने जया को सारी बात बताई अभिनव द्वारा अपनी सच्चाई बताए जाने पर जया समझ गई कि अभिनव अपने किए पर वाक्य में काफी शर्मिंदा था तथा उसको अपनी गलती का एहसास हो चुका है। मगर इतना सब हो जाने के बाद जया का मन अभिनव को एक बार फिर से खुद को अलग करने का नहीं कर रहा था मगर नरेश उसे खुद को साबित करने का एक और मौका देना चाहता था।
नरेश और जया अपने अरमानों को हारकर पुनः वापिस अपने गांव लौट चुके थे। मां- बाप को खुद से दूर जाता देख अभिनव समझ गया था कि यदि  वह अपने पथ से ना भटका होता तो शायद आज वह इस परिस्थिति में खुद को अकेला  ना पाता।उसे अपने आप को साबित करने का एक मौका मिला था। जिसे वह अब बर्बाद नहीं होने देना चाहता था। उसने फिर से अपने जीवन की बुनियाद गढ़नी शुरू की। मगर अंदर से खोखला हो जाने के कारण नई इमारत में उतनी जान नजर नहीं आ रही थी।अब अभिनव अपने पैरों पर जरूर खड़ा था। मगर उसका मन अभी भी उसके बीते पलो को कुरेद रहा था। उसने फिर से खुद को एक कलाकार के रुप में विकसित किया। उसकी जिंदगी एक बार फिर से ट्रैक पर दौड़ने लगी थी। मगर जिंदगी को कुछ और ही मंजूर था। कुछ महीनो बाद ही उसकी मुलाकात फिर से रचना से हुई मगर इस बार अभिनव ने उससे अपनी नजरों को फेरना ही उचित समझा।
दोनों को एक बार फिर एक नाटक में साथ काम करने का मौका मिला। जिसमें अभिनेता(अभिनव), अभिनेत्री(रचना) से पहली ही मुलाकात में प्यार कर बैठा। मगर कभी भी प्यार का इजहार अभिनेत्री से नहीं कर पाया। तथा अभिनेता के परीक्षा में फेल हो जाने के पर अभिनेत्री उसका साथ धीरे-धीरे छोड़ती चली गई। उसने कभी भी अभिनेता कि उसके प्रति प्यार को महसूस ही नहीं किया।
इतना सब हो जाने के बाद अभिनव द्वारा रचना के साथ एक बार फिर काम कर पाना आसान नहीं था। वह भी ऐसे नाटक में जो उसे उसके अतीत में ले जा रही थी। जहां से बाहर निकलने में उसे महीनों लग गए थे। निर्देशक द्वारा बहुत समझाने के बाद अभिनव इस नाटक को करने के लिए सहमत हो गया। अपनी वास्तविकता को पर्दे पर प्रदर्शित करना अभिनव के लिए आसान नहीं था। उसने इस नाटक में एक उत्कृष्ट दर्जे के कलाकार की तरह काम किया तथा सभी को उसके इस नाटक में किया गया अभिनय बहुत पसंद आया। उसके इस अभिनय के लिए उसे दिल्ली विश्वविद्यालय की ओर से उत्कृष्ट कलाकार का सम्मान भी प्रदान किया गया। रचना भी अभिनव की जिंदगी को एक बार फिर से महसूस कर के समझ गई थी कि उस समय उसने जो भी किया वह बिल्कुल भी सही नहीं था। वह एक बार फिर अभिनव की जिंदगी में लौटना चाहती थी। उसने अभिनव से माफी मांगी ,अभिनव ने भी उसका बड़े दिल के साथ अपनी जिंदगी में फिर से स्वागत किया। जया और नरेश भी अपने बेटे के कामयाबी से काफी खुश थे। उन्होंने ने भी अभिनव को माफ कर दिया।

~विक्की कुमार गुप्ता

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Tuesday 19 June 2018

माँ

उस पल जब मैं जिंदगी में आया
शायद कोई नहीं जानता कि मैंने तुझे कितना तकलीफ पहुंचाया
फिर भी तूने मुस्कुरा कर मुझे गले से लगाया
उस पल मुझे जिंदगी में सच्चे प्यार का मतलब समझ आया
ऐ माँ तूने मुझे इस जिंदगी में लाया........

पकड़कर मेरी उंगली को तूने मुझे चलना सिखाया
भूख लगने पर तूने दूध पिलाया
मेरे रोने पर तूने मुझे चुप कराया
लड़खड़ा कर गिर जाने पर तूने मेरे अंदर फिर उठने का साहस जगाया
मुझे तकलीफ में देखकर तूने मेरे लिए आंसू बहाया
ऐ माँ तूने मुझे इस जिंदगी में लाया.....

जब मैं बड़ा हुआ
अपने पैरों पर खड़ा हुआ.                  
तेरी गोदी मुझसे दूर चली गई
तेरी आंचल कहीं खो सी गई
तूने मेरे अंदर अपनी ख्वाहिशों को पाला
मगर मैंने नादानी में उसे हंसकर टाला
फिर भी तेरा अटल विश्वास मुझ पर बना रहा
फिर एक दिन मुझे एक बात याद आई
आखिर तू ही तो मुझे इस जिंदगी में लाई......

अब तेरी आंखों का रंग धुंधला पड़ने लगा
शरीर अपना रंग उगलने लगा
चेहरे की झुर्रियां अब तेरी पहचान बन गई
तूने मुझे इतना सब दिया
मगर तेरी जिंदगी एक झोपड़ी तक सिमट कर रह गई
तेरी इस हालत ने मुझे झकझोर डाला
ऐ माँ तूने मुझे इस जिंदगी में लाया......

मगर एक वह दिन भी आया
जब तेरा साया मेरे सर से हट गया
जिंदगी का एक रोचक अध्याय मेरे जीवन से कट गया
अब केवल तेरी यादें ही रह गई
मगर मुझ अभागे से तेरी कई फरियादें रह गई
आज मुझे अपनी उस गलती का एहसास बहुत होता है
आज जब तेरी याद आती है तो दिल बहुत रोता है
मेरी उस नादानी की सजा मुझे इतनी बड़ी मिलेगी
शायद मैंने कभी सोचा ना था
जिंदगी तेरे बिना इतनी सूनी हो जाएगी
इसका जरा सा एहसास भी ना था
अब अपनी गलतियों की क्षमा किस से मांगू?
यह जो हुआ उसकी सजा किस से मांगू?
तूने मुझ पर सदा प्यार लुटाया
मगर आज मैं तुझ से पूछता हूं तूने मुझे क्यों इस जिंदगी मे लाया?

~विक्की कुमार गुप्ता

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Sunday 3 June 2018

यहाँ सब कुछ बिकता है!

काले कोट से लेकर, खाकी वर्दी तक के ईमान का कीमत हो सकता है।
सफ़ेद कुर्ते के रंग के आगे हर ईमान वाले का सर झुक सकता है।
जनाब! यहां सब कुछ बिक सकता है।

अश्कों से लेकर, दिलों, दिमाग़ का भी सौदा हो.सकता है।
जिस्म तो यूं ही बदनाम है,.                                                          
यहां तो स्त्री के मन का भी मोल लग सकता है।
जनाब! यहां सब कुछ बिक सकता है।

हर बाजार एक मंडी है, हर कोई खरीदार हो सकता है।
सफ़ेद कुर्ते से लेकर खाकी वर्दी तक,
उस काले कोट का मूल्य भी,
ये लाल - गुलाबी नोट हो सकता है।
यहां तो इंसान के मन से लेकर , अर्थियों का व्यापार हो सकता है।
जनाब! यहां सब कुछ बिक सकता है।

जाग जाइए जनाब!
नहीं तो एक दिन आपका भी रेट लग सकता है।

यहां आरक्षण के नाम पर मौत का खेल हो सकता है,
चुनाव की जीत से लेकर, नौकरी की सीट तक मे घोटाला हो सकता है।
जनाब! यहां सब कुछ बिक सकता है।

यहां हत्या से लेकर , रेप तक का गुनाह आम बन सकता है।
जनाब! यहां कुछ भी बिक सकता है।

~By-Vicky Kumar Gupta
~ Edited By - Ragini Chaturvedi

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Tuesday 22 May 2018

कर्फ्यू

  अपनी प्राकृतिक और नैसर्गिक सुंदरता के लिए मशहूर शहर, कश्मीर। चाहे वह डल झील के किनारे तैरते हुए की रंगीन खूबसूरत शिकारों की कतारें हो या फिर लाल चौक पर सजी दुकानें, सभी कश्मीर की खूबसूरत वादियों से झांकती हुई शाम के साथ मर्दन करती हुई सभी को अपनी ओर खींचते हैं। कश्मीर बर्फ की सफेद चादर से ढका हुआ सभी को अपने अंदर समेटता शहर है। कश्मीर जिसमें शांति एवं अमन का एहसास होता है। जिसकी हर राहें लोगों को प्रकृति के अपनेपन का एहसास कराती हैं। इसकी वजह हमारी मान्यता है या फिर वहां की प्राकृतिक सुंदरता इसका अनुमान लगाना कठिन है।
    सर्दी अपने चरम पर थी और उसके ऊपर से बर्फीली हवाएं सर्दी के शुष्कपन को हवा दे रही थी। मैं होटल के बिस्तर पर कश्मीर के सपने देखता हुए गर्म लिहाफ़ में सिर से पाँव तक ढका हुआ अपने मन को बाहर निकलने के लिये मनाने की जद्दोज़हतम् लगा हुआ था। और बिस्तर भी मुझे किसी दिलचस्प हमसफर की तरह सुकून के आगोश में जकड़े हुए था और उस सुकून की ख़ुमारी मुझे उससे दूर नहीं जाने दे रही थी। मगर कश्मीर की बर्फ़ीली वादियों में चारोंओर फैली हुई सुंदरता के जादू ने बिस्तर के प्रेम को धराशायी करते हुए मुझे बिस्तर के मोहपाश से मुक्त करा दिया और बिस्तर से उतरते ही मैं खिड़की की ओर दौड़ा चला गया। कश्मीर की हसीं वादियां मुझे जन्नत की मौजूदगी का एहसास करा रही थी। आखिर में निकल पड़ा प्रकृति की इस बेहतरीन कारीगरी को और नज़दीक से देखने जिसकी बनावट के संदर्भ में अद्भुत एवं अकल्पनीय बातें सुन रखी थी। जब ये अद्भुत और अकल्पनीय बातें हक़ीक़त के कागज़ पर लिखी गयी तो वास्तविकता 24 कैरेट के सोने जितनी खरी थी। मुझे प्रकृति की गोद में ऐसा महसूस हो रहा था कि मानो वर्षों से बिछड़ा बचपन अपनी ममता की गोद में आकर उम्रभर के लिए थम जाना चाहता हो।
       सफर का पहला पड़ाव था, कश्मीर के केंद्र में स्थित लाल चौक। कश्मीर की भीड़ से भरा वो इलाका जो आराम और चैन को गोद में रख कर  चहल-पहल से भरा पड़ा था। घण्टाघरनुमा टॉवर और उसके आस पास बेहद खूबसूरत ढालदार छत वाली दुकानें, और पड़ी हुई 4-5 छतनुमा बेंच बाज़ार की चौकसी कर रही थीं। दुकानों के आसपास बच्चे खेल रहे थे। उन्हीं में से एक पर मेरी नजर टिक सी गई। उत्साह से भरा हुआ, तमाम चिंताओं से दूर, स्वयं में डूबा हुआ। मैं उससे बात करना चाहता था। लिहाज़ा उसको अपने पास बुलाकर मैंने उससे पूछा,“ तुम्हारा नाम क्या है?” उसके बिना किसी डर के मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “राशिद”। मैं उसके बारे में और जानना चाहता था। मगर मेरे अगले सवाल पूछे जाने से पहले ही वह वहां से बच निकला, और पुन: अपने दोस्तों के बीच खेलने में व्यस्त हो गया। शायद अब मैं उसके वहां से बच निकलने का कारण समझ सकता था। दुकानों से गुजरते वक्त एक शॉल ने मेरा मन मोह लिया मैंने शॉल की ऐसी कारीगरी पहले कभी नही देखी थी। मैं उसे अपनी मां  के लिए खरीदना चाहता था। लिहाज़ा मैं उसका दाम पूछने दुकान के अंदर चला गया, और मैंने दुकानदार से उस शॉल का रेट पूछा उसने उसकी कीमत ₹4000 बताई। मुझे यह काफी ज्यादा लगे, अतः मैं  वहां से लौटने लगा तभी दुकानदार ने कहा, “ सर ! प्योर कश्मीर की  कढ़ाई है, बड़े महीन हाथों का इस्तेमाल किया जाता है इसमें। अब नहीं लिया तो जरूर पछताओगे।” मैं उसकी सभी बातों को नजरअंदाज करता हुआ आगे निकल पड़ा, अपने सफ़र के अगले पड़ाव की ओर जो था। इसे कश्मीर यात्रा का सबसे खूबसूरत पड़ाव कहते हैं। डल झील। झील के बीचो-बीच हाउसबोट में सवार होकर शाम गुजारना कश्मीर के अंदर प्रवेश करने वाले हर एक पर्यटक की इच्छा होती है। डल झील के बीचो-बीच से कश्मीर को देखना स्वर्ग का एहसास करा रहा था। वह सफेद पर्वतों में डूबता हुआ लाल-नारंगी सूरज कश्मीर को अपनी एक एक किरणों से सुनहरा स्पर्श प्रदान करता हुआ अपने परममित्र चन्द्रमा का अवाहन कर रहा था। जिसमें कश्मीर का अमन, प्रेम ,भाईचारे का संदेश छुपा था। बस जरूरत थी तो उसको महसूस करने की। सांझ धीरे धीरे अपना स्लेटी चादर ओढ़ने लगी थी जो संकेत था की अपने सफ़र को स्थगित कर होटल लौटने का वक़्त हो गया है।
   मैं होटल लौटते वक़्त दिन भर की खूबसूरत थकान लिए हुए था और अब उन्ही खूबसूरत यादों के सपनों में खो जाना चाहता था सो होटल के कमरे में दाखिल होते ही मैं बिस्तर पर लेट गया। कश्मीर की सुंदरता में मैं इतना डूबा हुआ था कि आंख कब लगी इसका पता ही नहीं चला। अचानक गोलियों की कर्कश ध्वनि
कानों में चुभन पैदा करने लगी, मैं अचानक उठा और समझने का प्रयास करने लगा गोलियों की आवाज किधर से आ रही है? कुछ और समझ पाता इससे पहले ही गोलियों की आवाज और तेज हो गई, अब कुछ भयानक आवाजें भी सुनाई देने लगी, यह आवाजें शायद बमबारी की थी। मै ऊपर से नीचे तक कांप रहा था। मैं वहां से निकलना चाहता था, जैसे-तैसे मैंने अपने आप को संभाला और सीढ़ियों से नीचे उतरने लगा...नीचे पहूंचते ही होटल स्टाफ से पूछने का प्रयास करने लगा कि क्या हुआ है? सभी काफी डरे हुए थे। एक ने मेरे सवाल का दबे स्वर में जवाब दिया,“ आतंकवादी हमला साहब जी” होटल के सभी पर्यटक रिसेप्शन पर जमा हो चुके थे। सभी के डर का अनुमान उनके चेहरों से लगाया जा सकता था। कुछ घंटों बाद गोलियों की आवाज थम सी गई अब सभी पर्यटक अपने कमरे में लौटने लगे थे। मैं भी अपने कमरे में वापस आ चुका था। मगर एक अजीब सी बेचैनी मुझे घेरे हुए थी, जिससे सो पाना कठिन हो गया था। अपने तमाम डरों पर काबू पाने के बाद मै सोने का प्रयास करने लगा ,मगर जैसे ही आंख लगने वाली होती वैसे ही गोलियों की आवाज कानों में गूंज उठती। अब बस इंतजार था तो सुबह होने का जब यह पता चलेगा कि वाकई में हुआ क्या था?
   आज सुबह हुई तो मगर आज कश्मीर के वातावरण में कुछ परिवर्तन सा लग रहा था। आज इस प्रकृति में उतनी जान नजर नहीं आ रही थी जो मुझे बिस्तर से अपनी ओर खींच ले। अब यह जानने की इच्छा प्रबल हो गई कि आज इतना परिवर्तन क्यों? तो अखबार से पता चला कि कल रात हुए आतंकी हमले में सेना के 10 जवान शहीद हो गए हैं तथा 3 आम नागरिक भी उसी हमले में मारे गए हैं। आतंकी अभी भी शहर में छुपे हुए हैं। जिसके कारण पूरे शहर में अगले 2 दिनों के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया है। एहतियातन स्कूल-कॉलेजों को भी बंद रखा गया था। कर्फ्यू में ढील दिए जाने के बाद ,अब जब मैं सड़कों पर घूमने निकला तो मुझे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था ,कि एक रात में कश्मीर इतना ज्यादा बदल चुका था। किसी को भी इस बात का एहसास तक नहीं होगा कि एक रात में इतना बदल जाएगा कश्मीर। सड़कें वीरान पड़ी थी, जगह- जगह जवानों ने नाकाबंदी कर रखी थी। जो एहसास करा रहा था कि कल रात की घटना कितनी भयावह रही होगी। जिसके कारण हँसता-खेलता शहर मायूसी की गर्त में समा चुका था।
  आज सड़कों के किनारे बच्चे भी नहीं खेल रहे थे, वह भी बच्चा नहीं जो शायद कल तक तमाम चिंताओं से दूर था, इस कर्फ्यू ने उसे भी शायद चिंतित कर दिया होगा। दुकाने बंद पड़ी थी। वह भी दुकान जिससे कल मैं शॉल खरीदने गया था। दुकान के सामने खड़े होते ही मुझे उस दुकानदार द्वारा कल कहीं गई बात याद आ गई, जब उसने कहा था “अब नहीं लिया तो जरूर पछताओगे” वाकई में उसने सच कहा था।
  इस कर्फ्यू ने एक जीवित शहर को मार डाला था। जिसमें कर्फ्यू के बाद ना ही किसी प्रकार की रौनक नजर आ रही थी और ना ही किसी प्रकार का प्राकृतिक सौंदर्य। अब यह शहर केवल एक जमीन का टुकड़ा मात्र रह गया था। जिसमें कर्फ्यू के बाद वहां की सुंदरता को दफना दिया गया था। कश्मीर एक जीता जागता शहर आज इतना खामोश क्यों पड़ा था? इसका जवाब था ‛कश्मीर का कर्फ्यू’।

  कश्मीर मे बढते आतंकवादी हमलों को लेकर किसी ने लिखा है-
देख रहे हो लहू को ठहरी हुई झील में,
जाने क्या हो गया है इस स्वर्ग से कश्मीर मे,
बर्फ की जन्नत सी हसीं वादियों की कुटीर में,
दब कर रह गयी खुशियां केवल इतिहास की तस्वीर में।

~विक्की कुमार गुप्ता


Friday 30 March 2018

संघर्ष

राह अभी शुरू हुई है,
मंजिल तक पहुँचना अभी बाकी है                              
ये तो शुरूआती बाधा थी,
अभी और भी बाधाएं आना बाकी है।

आगे का हर एक बाधा खास होगा
जिंदगी के हर पथ पर तेरा उपहास होगा
अगर पार पा गया इन बाधाओं से
तो ये तुझे एक नया पहचान देंगी
तेरी जिंदगी को एक नया आयाम देंगी।

तो फिर अड़ा रह
मत हिल अपने पथ से
उखाड़ फ़ेंक सभी बाधाओं को
अपने परिश्रम और संघर्ष से।

इन कठिनाइयों के बाद जब तेरा मंजिल तेरे पास होगा
तेरे जीवन में एक नया उल्लास होगा
इतनी मेहनत के बाद तुझे क्या मिला?
इसका तब तुझे एहसास होगा।


#रास्तें तभी सरल होंगे
    जब इरादें अटल होंगे।
           


~विक्की कुमार गुप्ता

Thursday 22 March 2018

मेरे सपने


बादलों से आगे
आसमां के बीच बसते हैं मेरे सपने।                         
मेरी कल्पना से कहीं परे,
मेरे दिल में बसते हैं मेरे सपने                             
रात के घने अंधेरों में,  
मेरी आंखों पर छा जाते हैं मेरे सपने
रात के घने अंधेरों में,
मेरे कानों में मेरी मंजिले बता जाते हैं मेरे सपने
मेरी मंजिलों को साकार करने की
प्रेरणा दे जाते हैं मेरे सपने
घनी अंधेरी रात में,
मुझे गहरी नींद से जगा जाते हैं मेरे सपने
आखिर कुछ इस तरह मुझ पर राज  करते हैं मेरे सपने


~ विक्की कुमार गुप्ता

Monday 12 March 2018

आधुनिक शिक्षा या प्रतियोगिता

                 
 एक पुरानी कहावत है, प्रतियोगिता किसी भी चीज को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। चाहे वो बाजार हो या फिर समाज, यदि प्रतियोगिता न हो तो व्यक्ति के काम करने की इच्छा समाप्त हो जाती है, और वह मनचाहे ढंग से अपने कार्य को अंजाम देता है जबकि प्रतियोगिता उसके इस पथ मे बाधे का काम करता है। और यदि वह इस प्रकार से जीत हासिल करता है तो निश्चित तौर पर यह कहा जा सकता है, कि उसकी काबिलियत में अवश्य ही निखार आया है।
    शिक्षा में भी प्रतियोगिता काफी अहम भूमिका अदा करता है। यह विद्यार्थियों को अपनी कुशलता को बढ़ाने में खासा मदद करता है। मगर जब शिक्षा केवल प्रतियोगिता में सिमट के रह जाए तो फिर यह आधुनिक शिक्षा प्रणाली पर बड़ा प्रश्नचिंह लगाता है। यह सोचने पर मजबूर करता है कि इस प्रकार की प्रतियोगिता का क्या फायदा, जो केवल अंकों के लिए हो जिससे विद्यार्थी के आंतरिक मूल्यों में किसी प्रकार का विकास नहीं हो रहा। वह केवल किताबों के बीच में अपनी काबिलियत ढूंढने के प्रयास में लगा हुआ है। वह किताबों को केवल इसीलिए पढ़ना चाहता है, ताकि वह परीक्षा में अच्छे अंक ला सके, जो उसके संपूर्ण विकास में अवरोधक का काम करती है। अगर विद्यार्थी इस प्रकार से पढ़कर अच्छे अंक लाने में सफल हो भी जाता है तो उसका क्या फायदा?
     मगर ऐसा क्यों है? कि विद्यार्थी शिक्षा को प्रतियोगिता के नजरिए से देखता है। इसका सबसे बड़ा कारण है हमारी शिक्षा नीति, जो विद्यार्थियों की काबिलियत को उनके अंकों के आधार पर आंकती है। जिसके तहत यदि विद्यार्थी अच्छे अंक प्राप्त करेगा तभी उसे अच्छे कॉलेज में पढ़ने का मौका मिलेगा अन्यथा नहीं, जो विद्यार्थी को प्रभावित करता है कि शिक्षा की प्रतियोगिता के अंधे दौड़ में वह स्वयं को झोंक ले नहीं तो उसके मित्र किसी अच्छे कॉलेज में पढ़ रहे होंगे और वह कहीं किसी क्षेत्रीय कॉलेज तक सिमट कर रह जाएगा।
    आधुनिक शिक्षा कुछ इस प्रकार की हो गई है जिसका कोई मूल्य नहीं रह गया है। जिसमें केवल अंक किसी की काबिलियत एवं उसकी खामी बताने के लिए पर्याप्त है। इसमें व्यक्ति से ज्यादा उसके अंक मायने रखते हैं। विद्यार्थी चाह कर भी अपने आप को प्रतियोगिता में झोंकने से रोक नहीं पाता क्योंकि परिवार वालों की भी यही इच्छा रहती है कि मेरा बच्चा सबसे आगे रहे। मगर वह यह देखना भूल जाते हैं कि इस प्रकार से उनके बच्चों को प्राप्त होगा भी तो क्या? केवल और केवल एक कागज का टुकड़ा जो हर जगह यह बयां करेगा कि यह बच्चा कितना कुशल है। मगर इस प्रकार की प्रतियोगिता बच्चे को अपने आंतरिक गुणों को बाहर लाने का अवसर प्रदान नहीं करती जिसका परिणाम यह होता है कि बच्चा खुद से इतना परेशान हो जाता है। जो उसे गलत कदम उठाने के लिए मजबूर करती है
   अब हमारे एवं समाज के लिए यह जरुरी हो चुका है कि वह इस प्रकार की प्रतियोगिता युक्त शिक्षा व्यवस्था को सुधारने का प्रयास करें और अपने बच्चों के मूल्यों के विकास पर ध्यान दे। क्योंकि किसी व्यक्ति का आंतरिक मुल्य उसका सबसे महत्वपूर्ण धन होता है। जिसके बिना व्यक्ति का शरीर केवल एक ढांचा होता है। व्यक्ति का मूल्य एवं उसकी कामयाबी को ही याद रखा जाता है ना कि उसके अंको को। अतः हमें किसी भी व्यक्ति को परखने का पैमाना बदलना होगा जो अंको पर आधारित ना होकर उसकी काबिलियत एवं मूल्यों के आधार पर निर्धारित हो।

 विक्की कुमार गुप्ता


Monday 5 March 2018

मै बोलूंगा


जब ईज्जत हो तार-तार
खामोशी ही बन जाए दीवार
जब बेवसी रही होगी पुकार
तब मैं बोलूंगा...!

जब हो दुराचार ,
जब बढ़ जाए अत्याचार,
जब न मिल पाए इन सबका उपचार
तब मैं बोलूंगा..!

जब इंसा हो संकट में
भले ही कांटे क्यों न हो पथ में
तब धर्म की जंजीरे तोडूंगा
तब मैं बोलूंगा...!

अगर फिर कहीं ख़ामोशी छा जाए
इंसा, इंसा से घबरा जाए
तब मैं खुद के अंदर के इंसा को टटोलूंगा
तब मैं फिर बोलूंगा...

~विक्की कुमार गुप्ता

Sunday 4 March 2018

समीकरण


अपनों के अर्चन से
बदलते समाजिक दर्पण से
बेईमानो की टोली से
राजनीति की बोली से
ऐसे बदलते हैं समीकरण...

कुर्सी की लड़ाई से
सेवा की मलाई से
जाति की वोट से
और धार्मिक चोट से
क्यों बदलते हैं समीकरण...?

किसी अनचाहे तकरार से
अहम की दीवार से
किसी अनजाने प्यार से
अपनों की धुतकार से
बदल जाते हैं समीकरण...

सत्ता के गलियारों से
घर की दीवारों से
वादों के इनकार से
और हमारी हार से
बदल ही जाते ये समीकरण...

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मै बोलूंगा

जब ईज्जत हो तार-तार खामोशी ही बन जाए दीवार जब बेवसी रही होगी पुकार तब मैं बोलूंगा...! जब हो दुराचार , जब बढ़ जाए अत्याचार, जब न मिल ...