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Monday 4 March 2019

क़ाश हमने मुस्कुराना सीख लिया होता

दबाए फिरता हूँ
हर जख्म को यूं सीने में
हँस लेता हूँ
एकाद-बार महीनों में
घर का खर्च,
बच्चो की फीस,
बिटिया की गुल्लक,
आखिर तमाम जिम्मेदारियों को कैसे भूल जाऊं?
अचानक यूं कैसे मुस्कुराऊँ?

मुस्कुराने का कोई कारण नही होता।
परेशानियों को मिटाने का,
इससे सही साधन नही होता।
तो कुछ देर के लिए ही सही
जिम्मेदारियों का भार कंधो से हटाइए
और एक बार खिलखिलाकर के मुस्कुराइए

हारने पर पछताना न होगा,
कमरे मे खुद को बंद करके सिसकियाँ बहाना न होगा,
यूं मुसीबतों से नजरे चुराना  न होगा,
खुश रहना मनोचिकित्सकों को सिखाना न होगा,
उम्र के अंतिम पड़ाव में दवा केवल सहारा न होगा,
यदि तुमने मुस्कुराना सीख लिया होगा।

सारी पृथ्वी रंगीन होगी,
जिंदगी की हर शाम हसीन होगी,
शरीर में नई ऊर्जा का संचार होगा,
हर परेशानी का तुम्हारे पास उपचार होगा,
एक बार मुस्कुराने मात्र से इतना कुछ बदल जाएगा!
तो एक बार फिर से खिलखिलाकर मुस्कुराइए
वरना सच कहता हूं, समय बहुत आगे निकल जाएगा...2

तो हँसिए,मुस्कुराइए ताकि किसी परेशानी के सामने आपको ये न कहना पड़े-
               “क़ाश मुस्कुराना सीख लिया होता”

★विक्की कुमार गुप्ता
©compilethethoughts.blogspot.com

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