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Friday, 30 March 2018

संघर्ष

राह अभी शुरू हुई है,
मंजिल तक पहुँचना अभी बाकी है                              
ये तो शुरूआती बाधा थी,
अभी और भी बाधाएं आना बाकी है।

आगे का हर एक बाधा खास होगा
जिंदगी के हर पथ पर तेरा उपहास होगा
अगर पार पा गया इन बाधाओं से
तो ये तुझे एक नया पहचान देंगी
तेरी जिंदगी को एक नया आयाम देंगी।

तो फिर अड़ा रह
मत हिल अपने पथ से
उखाड़ फ़ेंक सभी बाधाओं को
अपने परिश्रम और संघर्ष से।

इन कठिनाइयों के बाद जब तेरा मंजिल तेरे पास होगा
तेरे जीवन में एक नया उल्लास होगा
इतनी मेहनत के बाद तुझे क्या मिला?
इसका तब तुझे एहसास होगा।


#रास्तें तभी सरल होंगे
    जब इरादें अटल होंगे।
           


~विक्की कुमार गुप्ता

Thursday, 22 March 2018

मेरे सपने


बादलों से आगे
आसमां के बीच बसते हैं मेरे सपने।                         
मेरी कल्पना से कहीं परे,
मेरे दिल में बसते हैं मेरे सपने                             
रात के घने अंधेरों में,  
मेरी आंखों पर छा जाते हैं मेरे सपने
रात के घने अंधेरों में,
मेरे कानों में मेरी मंजिले बता जाते हैं मेरे सपने
मेरी मंजिलों को साकार करने की
प्रेरणा दे जाते हैं मेरे सपने
घनी अंधेरी रात में,
मुझे गहरी नींद से जगा जाते हैं मेरे सपने
आखिर कुछ इस तरह मुझ पर राज  करते हैं मेरे सपने


~ विक्की कुमार गुप्ता

Monday, 12 March 2018

आधुनिक शिक्षा या प्रतियोगिता

                 
 एक पुरानी कहावत है, प्रतियोगिता किसी भी चीज को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। चाहे वो बाजार हो या फिर समाज, यदि प्रतियोगिता न हो तो व्यक्ति के काम करने की इच्छा समाप्त हो जाती है, और वह मनचाहे ढंग से अपने कार्य को अंजाम देता है जबकि प्रतियोगिता उसके इस पथ मे बाधे का काम करता है। और यदि वह इस प्रकार से जीत हासिल करता है तो निश्चित तौर पर यह कहा जा सकता है, कि उसकी काबिलियत में अवश्य ही निखार आया है।
    शिक्षा में भी प्रतियोगिता काफी अहम भूमिका अदा करता है। यह विद्यार्थियों को अपनी कुशलता को बढ़ाने में खासा मदद करता है। मगर जब शिक्षा केवल प्रतियोगिता में सिमट के रह जाए तो फिर यह आधुनिक शिक्षा प्रणाली पर बड़ा प्रश्नचिंह लगाता है। यह सोचने पर मजबूर करता है कि इस प्रकार की प्रतियोगिता का क्या फायदा, जो केवल अंकों के लिए हो जिससे विद्यार्थी के आंतरिक मूल्यों में किसी प्रकार का विकास नहीं हो रहा। वह केवल किताबों के बीच में अपनी काबिलियत ढूंढने के प्रयास में लगा हुआ है। वह किताबों को केवल इसीलिए पढ़ना चाहता है, ताकि वह परीक्षा में अच्छे अंक ला सके, जो उसके संपूर्ण विकास में अवरोधक का काम करती है। अगर विद्यार्थी इस प्रकार से पढ़कर अच्छे अंक लाने में सफल हो भी जाता है तो उसका क्या फायदा?
     मगर ऐसा क्यों है? कि विद्यार्थी शिक्षा को प्रतियोगिता के नजरिए से देखता है। इसका सबसे बड़ा कारण है हमारी शिक्षा नीति, जो विद्यार्थियों की काबिलियत को उनके अंकों के आधार पर आंकती है। जिसके तहत यदि विद्यार्थी अच्छे अंक प्राप्त करेगा तभी उसे अच्छे कॉलेज में पढ़ने का मौका मिलेगा अन्यथा नहीं, जो विद्यार्थी को प्रभावित करता है कि शिक्षा की प्रतियोगिता के अंधे दौड़ में वह स्वयं को झोंक ले नहीं तो उसके मित्र किसी अच्छे कॉलेज में पढ़ रहे होंगे और वह कहीं किसी क्षेत्रीय कॉलेज तक सिमट कर रह जाएगा।
    आधुनिक शिक्षा कुछ इस प्रकार की हो गई है जिसका कोई मूल्य नहीं रह गया है। जिसमें केवल अंक किसी की काबिलियत एवं उसकी खामी बताने के लिए पर्याप्त है। इसमें व्यक्ति से ज्यादा उसके अंक मायने रखते हैं। विद्यार्थी चाह कर भी अपने आप को प्रतियोगिता में झोंकने से रोक नहीं पाता क्योंकि परिवार वालों की भी यही इच्छा रहती है कि मेरा बच्चा सबसे आगे रहे। मगर वह यह देखना भूल जाते हैं कि इस प्रकार से उनके बच्चों को प्राप्त होगा भी तो क्या? केवल और केवल एक कागज का टुकड़ा जो हर जगह यह बयां करेगा कि यह बच्चा कितना कुशल है। मगर इस प्रकार की प्रतियोगिता बच्चे को अपने आंतरिक गुणों को बाहर लाने का अवसर प्रदान नहीं करती जिसका परिणाम यह होता है कि बच्चा खुद से इतना परेशान हो जाता है। जो उसे गलत कदम उठाने के लिए मजबूर करती है
   अब हमारे एवं समाज के लिए यह जरुरी हो चुका है कि वह इस प्रकार की प्रतियोगिता युक्त शिक्षा व्यवस्था को सुधारने का प्रयास करें और अपने बच्चों के मूल्यों के विकास पर ध्यान दे। क्योंकि किसी व्यक्ति का आंतरिक मुल्य उसका सबसे महत्वपूर्ण धन होता है। जिसके बिना व्यक्ति का शरीर केवल एक ढांचा होता है। व्यक्ति का मूल्य एवं उसकी कामयाबी को ही याद रखा जाता है ना कि उसके अंको को। अतः हमें किसी भी व्यक्ति को परखने का पैमाना बदलना होगा जो अंको पर आधारित ना होकर उसकी काबिलियत एवं मूल्यों के आधार पर निर्धारित हो।

 विक्की कुमार गुप्ता


Monday, 5 March 2018

मै बोलूंगा


जब ईज्जत हो तार-तार
खामोशी ही बन जाए दीवार
जब बेवसी रही होगी पुकार
तब मैं बोलूंगा...!

जब हो दुराचार ,
जब बढ़ जाए अत्याचार,
जब न मिल पाए इन सबका उपचार
तब मैं बोलूंगा..!

जब इंसा हो संकट में
भले ही कांटे क्यों न हो पथ में
तब धर्म की जंजीरे तोडूंगा
तब मैं बोलूंगा...!

अगर फिर कहीं ख़ामोशी छा जाए
इंसा, इंसा से घबरा जाए
तब मैं खुद के अंदर के इंसा को टटोलूंगा
तब मैं फिर बोलूंगा...

~विक्की कुमार गुप्ता

Sunday, 4 March 2018

समीकरण


अपनों के अर्चन से
बदलते समाजिक दर्पण से
बेईमानो की टोली से
राजनीति की बोली से
ऐसे बदलते हैं समीकरण...

कुर्सी की लड़ाई से
सेवा की मलाई से
जाति की वोट से
और धार्मिक चोट से
क्यों बदलते हैं समीकरण...?

किसी अनचाहे तकरार से
अहम की दीवार से
किसी अनजाने प्यार से
अपनों की धुतकार से
बदल जाते हैं समीकरण...

सत्ता के गलियारों से
घर की दीवारों से
वादों के इनकार से
और हमारी हार से
बदल ही जाते ये समीकरण...

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मै बोलूंगा

जब ईज्जत हो तार-तार खामोशी ही बन जाए दीवार जब बेवसी रही होगी पुकार तब मैं बोलूंगा...! जब हो दुराचार , जब बढ़ जाए अत्याचार, जब न मिल ...