Translate

Tuesday, 18 February 2020

सच पूछो तो मुझे फर्क पड़ता ही नही

थोड़ा ढीठ हूँ,
तो थोड़ा खुदगर्ज भी,
थोड़ा निर्लज्जित भी हूँ ,
तो थोड़ा बेआबरू भी,
थोड़ा क़ानूनी बेड़ियों में जकड़ा हुआ हूँ,
तो थोड़ा वक्त का मारा भी,
थोड़ा कसूरवार भी हूँ,
तो थोड़ा बेसहारा भी,
थोड़ा बेबाक हूँ,
तो थोड़ा खामोश भी,
आखिर हूं कौन मै?
एक समाज,
या फिर उसका एक मुखौटा।

By -Vicky Gupta
©Compilethethoughts.blogspot.com



Featured post

मै बोलूंगा

जब ईज्जत हो तार-तार खामोशी ही बन जाए दीवार जब बेवसी रही होगी पुकार तब मैं बोलूंगा...! जब हो दुराचार , जब बढ़ जाए अत्याचार, जब न मिल ...